बुद्ध के आंसू बुद्ध कथा
एक दिन भगवान बुद्ध भ्रमण पर निकले। घूमते घूमते दोपहर हो चली थी। वे थक चुके थे। पास ही आम का एक बाग था। वे वहां चले गए।
बाग में लगे पेड़ आमों से लदे हुए थे। कई आम नीचे गिरे हुए थे। महात्मा बुद्ध को तब तक भूख लग आई थी। वे पेड़ के नीचे गिरे आमों को उठा कर खाने लगे। भूख शांत हुई, तो वे उसी पेड़ की छाया में विश्राम करने लगे।
कुछ देर बाद बाग में कुछ युवक आए। आमों से लदे पेड़ देख वे पत्थर मारकर उन्हें तोड़ने लगे। वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि उसी पेड़ के दूसरी ओर बुद्ध विश्राम कर रहे हैं।
एक युवक ने एक आम को निशाना साधकर पत्थर फेंका। किंतु उसका निशाना चूक गया और वह पेड़ के दूसरी ओर आराम कर रहे बुद्ध के सिर पर जा लगा। बुद्ध के सिर से रक्त की धारा बह निकली।
अनहोनी की आशंका से तुरंत वे सभी युवक पेड़ की दूसरी ओर गए। वहाँ उन्होंने चोटिल बुद्ध को देखा। उनके सिर से रक्त बह रहा था और आँखों से अश्रुधारा।
युवकों ने सोचा, अवश्य ही पीड़ावश बुद्ध की आंखों में आंसू छलक आए हैं। जिस युवक ने पत्थर फेंका था, वह अपराधबोध से भर उठा और कहने लगा, “भगवन! मैं क्षमाप्रार्थी हूं। मेरे कारण आप ये पीड़ा भोग रहे हैं। आपकी आंखों से बहने वाले आंसुओं का कारण मैं हूं।”
ये सुनकर बुद्ध बोले, “नहीं बंधु, ऐसा नहीं है। मैं सोच रहा हूं कि तुमने आम के पेड़ पर पत्थर मारा, तो बदले में उसने तुम्हें मीठे फल दिए। किंतु जब तुमने मुझे पत्थर मारा, तो मैं बदले में तुम्हें क्या दे रहा हूं – भय और अपराधबोध। यही विचार मेरी आँखों में आंसुओं का कारण है।”
सीख (Buddha Ke Ansu Buddha Story Moral)
दोस्तों! महात्मा बुद्ध सीख देते हैं कि हमें आम के पेड़ की तरह होना चाहिए – परोपकार की भावना से ओतप्रोत और सदा दूसरों के भले के बारे में सोचने वाला, फिर चाहे दूसरे हमारे बारे में जो भी सोचें या हमसे जैसा भी व्यवहार करें। मन में दूसरों के प्रति कटुता की भावना लाकर हम अपना मन मलिन कर लेंगे और मन की शांति खो देंगे। इसलिए सदा दूसरों का भला सोचें, भला करें। भलाई कभी व्यर्थ नहीं जाती, आज नहीं तो कल, किसी न किसी रूप में उसका फल अवश्य मिलता है।